भारतीय इतिहास में पीपल वृक्ष का महत्व

  • Sanghmitra Baudh
Keywords: भारतीय इतिहास में पीपल वृक्ष का महत्व, पीपल वृक्ष का महत्व

Abstract

पालि साहित्य में बोधिवृक्ष की पूजा विशेषोल्लेखनीय रही है। बोधि-वृक्ष वस्तुतः पीपल वृक्ष ही है। जिसके नीचे राजकुमार सिद्धार्थ ने स्वयं, अपने प्रयास से सम्बोधि प्राप्त की तदनन्तर वह संबुद्ध कहलाये। इसलिए यह पीपल वृक्ष बौद्ध जगत तथा पालि इतिहास में बोधि-वृक्ष के नाम से प्रसिद्ध हुआ। देश-विदेश में भी इसकी शाखाओं के रोपण का प्रचलन आरम्भ हुआ। सर्वप्रथम जम्बुद्वीप (भारत) से अन्यत्र अशोकपुत्री थेरी संधमित्रा द्वारा लंका में इसका रोपण किया गया। इस वृक्ष की भारत एवं श्रीलकंा के सांस्कृतिक एवं अन्य सम्बन्धों को सुद्ढ़ बनाने में विशेष भूमिका रही है।
राजकुमार सिद्धार्थ ने वर्तमान बोधगया में जिस पीपल वृक्ष के नीचे बोधि प्राप्त की उसका बौद्ध धर्म में सर्वाधिक महत्व है। ऐतिहासिक तथागत बुद्ध से सम्बन्धित चार प्रमुख स्थान भी किसी प्रकार से वृक्ष विशेष से जुड़े हुए हैं, जैसे- बुद्ध का जन्म स्थान लुम्बिनी नामक शालवन में सुन्दर पुष्पित शाखाओं के मध्य, जहाँ सम्बोधि प्राप्त की उरूवेला (वर्तमान बोधगया) में बोधिवृक्ष (पीपल) के नीचे, धर्मचक्रप्रवत्र्तन किया सारनाथ के मृगदाय अर्थात् प्राकृतिक छत्र-छाया में तथा महापरिनिर्वाण को प्राप्त हुए कुशीनगर में शाल-वृक्ष के नीचे। ये बौद्ध-धर्म के प्रमुख चार तीर्थ स्थल है। इनमें से दूसरा उरूवेला (वर्तमान बोधगया) में नैरंजना नदी के तट पर स्थित बोधिवृक्ष का विशेष महत्व है। जिसके नीचे तथागत स्वंय अपने प्रयास से सम्यक्-सम्बुद्ध हुए अर्थात् उन्होंने सर्वज्ञता (संबोधि) प्राप्त किया। आज भी यह विश्व का सबसे प्राचीन तथा ऐतिहासिक महत्व वाला वृक्ष है एवं भारतवर्ष की सर्वाधिक मूल्यवान् साँस्कृतिक धरोहर है। सर्वप्रथम शाक्यमनि बुद्ध ने ही अपने साधना क्रम में इसकी अनिमिष पूजा की। श्रावस्ती के जेतवन में बोध गया से बोधिशाखा लाकर आनन्द ने लगायी। इस प्रकार बुद्ध के जीवन-काल में ही ‘बोधिवृक्ष-पूजा’ धर्म का अंग बन गई।

Published
2020-09-29
How to Cite
Baudh, S. (2020). भारतीय इतिहास में पीपल वृक्ष का महत्व. Bodhi Path, 19(2), 49-54. Retrieved from https://www.bodhi-path.com/index.php/Journal/article/view/52