बौद्ध साहित्य का विशाल भण्डार ’’त्रिपिटिक’’

  • Dr Kameshwar Prasad
Keywords: बुद्धकाल साहित्यिक, त्रिपिटिक

Abstract

बुद्धकाल साहित्यिक गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। बौद्ध साहित्य से हमारा तात्पर्य बौद्ध वांगमय से हैं साहित्य शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है, (1) प्रथम साहित्य का अर्थ सीमित है जो रचनात्मक एवं कलात्मक साहित्य है तथा जो रचनात्मक होता है एवं जिसके द्वारा लोकोत्तर आनन्द की अनुभूति होती है। (2) दूसरा अर्थ अधिक व्यापक है जिसके संचित ज्ञान राशि का समस्त भण्डार समाहित होता है। इसी को दूसरे शब्दों में वांगमय कहा जाता है। इसके अंतर्गत रचनात्मक या कलात्मक साहित्य तथा अतिरिक्त ज्ञान-विज्ञान से सम्बद्ध समस्त विद्यायें परिगणित होती है। इस तरह धर्म, दर्शन, भाषा शास्त्र (व्याकरण), शिक्षा, नीति, आयुर्वेद, विज्ञान, इतिहास, कला, विज्ञान तथा प्रविधि आदि सभी शास्त्र इसमें समाहित हो जाते हैं।
अंग्रेजी भाषा में साहित्य और वांगमय दोनों के एक ही शब्द ’’लिटरेचर’’ का प्रयोग होता है। अंग्रेजी के इस शब्द के अनुवाद के कारण ही हिन्दी में साहित्य के मूल अर्थ साथ-साथ उसके व्यापक अर्थ का बोध होता है। इस कारण यहाँ स्पष्ट कर देना आवश्यक था कि बौद्ध साहित्य से हमारा तात्पर्य उस बौद्ध वांगमय से है जिसके अंतर्गत बौद्ध कवियों द्वारा लिखित अथवा बौद्ध धर्म से सम्बद्ध विषयों पर अन्य विद्वानों द्वारा लिखित काव्य, नाटक, कथा, आख्यायिका आदि के साथ-साथ बौद्ध धर्म से सम्बद्ध समस्त धर्म ग्रंथों, अवदान-कथाओं तथा उपदेशात्मक आख्यान का भी समावेश हो जाता है।त्रिपिटिक,

Published
2020-09-29
How to Cite
Prasad, D. K. (2020). बौद्ध साहित्य का विशाल भण्डार ’’त्रिपिटिक’’. Bodhi Path, 19(2), 35-42. Retrieved from https://www.bodhi-path.com/index.php/Journal/article/view/54