Editorial

बौद्धदर्शन में सम्यक्दृष्टि

  • Sanghmitra Baudh
Keywords: सम्यक्दृष्टि

Abstract

बौद्धदर्शन में ‘सम्यक्दृष्टि‘ का विशिष्ट महत्व है। सम्यक्दृष्टि से ही कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। बौद्धदर्शन में आर्य अष्टांगिक मार्ग को दुःख निरोधगामी मार्ग कहा गया है। यह मार्ग आठ अंगो से समन्नागत है तभी इसका नाम आर्य अष्टांगिक मार्ग है। यह मध्यमा प्रतिपदा भी है। इस आर्य अष्टांगिक मार्ग में प्रथम सम्यक्दृष्टि है। यहाँ दृष्टि से पूर्व ‘सम्यक्‘ शब्द प्रयुक्त है क्योंकि दृष्टि या दर्शन मिथ्या भी होता है। ‘सम्यक्‘ शब्द से मिथ्यादृष्टि का परिहार हो जाता है।
सम्यक्दृष्टि - जीव, अजीव आदि सभी तत्वों को यथार्थ ग्रहण करने वाली दृष्टि
सम्यक्दृष्टि है। यह दृष्टि जिसे प्राप्त होती है, वह सम्यक्दृष्टि कहलाता है। सम्यक्दृष्टि जिस व्यक्ति को प्राप्त हो जाती है उसे निर्वाणगमन का आरक्षण पत्र उपलब्ध हो जाता है। सम्यकत्व एक प्रकार से आत्मविकास की सुदृढ़ पृष्ठभूमि है, जिस पर आरूढ़ होकर ही व्यक्ति पूर्ण विकास की स्थिति तक पहुंच सकता है। प्रमुख रूप से दृष्टि तीन प्रकार कर बतलाई गई है। सम्यक्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सत्कायदृष्टि। नश्वर शरीर को आत्मा मानकर उसके प्रति मोह रखता है, वह सत्कायदृष्टि है।1
मिथ्यादृष्टि - जो दृष्टि जीव, अजीव आदि तत्वों को अयथार्थ ग्रहण करता है वह
मिथ्यादृष्टि है। यह दृष्टि जिस व्यक्ति को होती है वह ‘मिथ्यादृष्टि‘ कहलाता है। जिस प्रकार धतूरा आदि फल के खाने वाले व्यक्ति की दृष्टि दूषित हो जाने से वह वस्तुओं को विपरित देखता है, उसी प्रकार मोह से वशीभूत जो पदार्थों को विपरित देखता है, वह मिथ्यादृष्टि कहलाती है।

Published
2020-01-31
How to Cite
Baudh, S. (2020). Editorial. Bodhi Path, 18(1), 1-4. Retrieved from https://www.bodhi-path.com/index.php/Journal/article/view/44